

धनतेरस
दिनांक - 12 अक्टूबर 2023
धनतेरस का त्योहार अष्टम मास (आठवां माह) ऊर्ज मास (कार्तिक माह) में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाने वाला त्योहार है। धनतेरस को धन त्रयोदशी व धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जनक धन्वंतरि देव समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए धन तेरस को धन्वंतरि जयंती भी कहा जाता है। धन्वंतरि देव जब समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे उस समय उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। इसी वजह से धन तेरस के दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है। धनतेरस पर पीतल और चांदी के बर्तन खरीदने की परंपरा है। मान्यता है कि बर्तन खरीदने से धन समृद्धि होती है। इसी आधार पर इसे धन त्रयोदशी या धनतेरस कहते हैं।
शास्त्रोक्त-नियम
धन तेरस के दिन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) में यमराज को दीपदान भी किया जाता है। यदि दोनों दिन त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल का स्पर्श करती है तो दीपदान दूसरे दिन किया जाता है।
पूजा-विधि
मानव जीवन का सबसे बड़ा धन उत्तम स्वास्थ्य है, इसलिए आयुर्वेद के देव धन्वंतरि के अवतरण दिवस यानि धन तेरस पर स्वास्थ्य रूपी धन की प्राप्ति के लिए भी यह त्योहार मनाया जाना चाहिए। धनतेरस पर धन्वंतरि देव की षोडशोपचार पूजा का विधान है। षोडशोपचार यानि विधिवत 16 क्रियाओं से पूजा संपन्न करना, इनमें आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन (सुगंधित पेय जल), स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध (केसर-चंदन), पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन (शुद्ध जल), दक्षिणायुक्त तांबूल, आरती, परिक्रमा आदि है। इस दिन शाम के समय घर के मुख्य द्वार और आंगन में दीये जलाने चाहिए, क्योंकि धनतेरस से ही दीपावली के त्यौहार की शुरुआत होती है। धनतेरस के दिन शाम के समय यम देव के निमित्त दीपदान किया जाता है, मान्यता है कि ऐसा करने से मृत्यु के देवता यमराज के भय से मुक्ति मिलती है।
विवस्वान मेडिटेशनम् की ओर से आप सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं...
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